प्रकाश
(परवर्तन तथा अपवर्तन )
प्रकाश :-   प्रकाश वह भौतीक कारण है, जिसकी सहायता से हम वस्तुओं को देखते हैं।

  • कोई वस्तु उस पर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित करती है। यह परावर्तित प्रकाश जब हमारी आँखों द्वारा ग्रहण किया जाता है, तो हमें वस्तुओं को देखने योग्य बनता है। 
  • पारदर्शी पदार्थ अपने से होकर प्रकाश को पार (Transmit ) होने देता है। 
  •  दर्पणों द्वारा प्रतिविम्ब का बनाना , तारों का टिमटिमाना , इंद्रधनुष के  सुन्दर रंग , किसी माध्यम द्वारा प्रकाश को मोड़ना आदि प्रकाश के कारण ही घटित होता है। 
  • प्रकाश सरल रेखाओं में गमन करता प्रतीत होता है।  यह तथ्य कि एक छोटा प्रकाश स्रोत किसी अपारदर्शी वस्तु की तीक्ष्ण छाया बनता है , प्रकाश के एक सरलरेखीय पथ की ओर इंगित करता है , जिसे प्राय: प्रकाश किरण कहते है। 
प्रकाश  का परवर्तन (Reflection of  light )
     किसी चिकनी सतह से प्रकाश के वापस लौटने की घटना को प्रकाश का परवर्तन कहते हैं।
प्रकाश के परावर्तन के दो नियम हैं:-

  1. आपतित किरण , परवर्तित किरण और आपतन बिंदु पर डाला गया लम्ब तीनों  एक ही समतल में होते हैं। 
  2. आपतन कोण , परावर्तन कोण के बराबर होता है। (<i =<r )
Note :- आपतन बिंदु (Point of incidence):- समतल सतह के जिस बिंदु पर प्रकाश की किरणें आकर गिरती है , उसे आपतन-बिंदु  कहते है। 

दर्पण (Mirror )
उस सतह (पृष्ठ ) को दर्पण कहते हैं जो नियमित रूप से अर्थात निश्चित नियमों के अनुसार प्रकाश को परावर्तित करती है।
दर्पण दो प्रकार के होते हैं :-

  1. समतल दर्पण(Plane Mirror ):- जिस दर्पण की परावर्तन सतह समतल होती है , उसे समतल दर्पण कहते हैं। 

समतल दर्पण से बने प्रबिम्ब की विशेषताएँ  :-

  • प्रतिबिम्ब सीधा होता है। 
  • प्रतिबिम्ब आकार वास्तु के आकार के बराबर होता है। 
  • दर्पण से प्रतिबिम्ब की दुरी एवं वस्तु की दुरी समान होती है। 
  • प्रतिबिम्ब आभासी होती है। 
  • प्रतिबिम्ब को पर्दे से दिखाया नहीं जाता है। 
  • प्रतिबिम्ब में पार्शव परिवर्तन होता है। 
समतल दर्पण के उपयोग :-
  • बहुरूपदर्शी (kaleidoscope )
  • परिदर्शी (periscope )
  • आईना (looking glass ) आदि। 
गोलीय दर्पण (Spherical Mirror ):- ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ गोलीय होता है ,उसे गोलीय दर्पण कहते है। 
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है :-
  1. अवतल या अभिसारी दर्पण (concave or converging mirror ):- गोलिय दर्पण का भाग जिसका परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर वक्रित रहता है उसे अवतल दर्पण कहते हैं।  इसमें बिम्ब का विशाल , सीधा एवं आभासी प्रतिबिम्ब बनता है।  
  2. उत्तल या अपसारी दर्पण (Convex or Diverging Mirror) :- वह गोलीय दर्पण  जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित हो , उत्तल दर्पण कहलाता है। 
      इसमें बिम्ब का हमेशा छोटा प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है।     
     चम्मच का अंदर की ओर वक्रित पृष्ठ अवतल दर्पण जैसा तथा चम्मच का बाहर की ओर उभरा पृष्ठ उत्तल दर्पण जैसा है।  

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