कार्य और खेल

 कार्य और खेल 

कार्य:- किसी व्यक्ति का क्रियाशील होना ही कार्य कहलाता है।
क्रियाशील :- किसी न किसी  गतिविधि में सलग्न होना क्रियाशील कहलाता है। जैसे :- खाना , पढ़ना , खेलना , सोचना आदि।
दूसरे शब्दों में :- स्वयं के लिए या समज के लिए किसी तरह के उत्पादन  की दिशा में किया गया शारीरिक श्रम या मानसिक श्रम को कार्य कहते हैं।

कार्य दो प्रकार के होते हैं:-

  1. मानसिक कार्य :- जब किसी व्यक्ति का मस्तिष्क अधिक सक्रिय रहता है , तब वह मानसिक कार्य कहलाता है। जैसे :- सोचना , स्मरण करना , ध्यान करना आदि। 
  2. शारीरिक कार्य :- जब किसी व्यक्ति का शरीर अधिक सक्रिय रहता है , तब वह शारीरिक कार्य कहलाता है। जैसे:- खेलना , दौड़ना , रोना , सोना , खाना आदि। 
     जब हम किसी काम को लम्बे समय तक या लगातर करते हैं तो हम शारीरिक एवं मानसिक रूप से थक जाते हैं। तन हमें फिर से तारोताजा होने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता महसूस होती है, जैसे:- पढ़ना , खेलना , गीत सुनना , चलचित्र देखना आदि। 

 खेल दो प्रकार के होते हैं :-
  • आंतरिक खेल :- ऐसा खेल जो घर या छोटे स्थानों पर खेला जाता है , उस खेल को आतंरिक खेल कहा जाता है। जैसे :- लूडो ,शतरंज , कैरमबोर्ड आदि। 
  • बाह्य खेल :- ऐसा खेल जिसे खेलने के लिए बड़े स्थानों या मैदानों की आवस्यकता होती है , उस खेल को बाह्य खेल कहते हैं। जैसे :- क्रिकेट  , फुटबॉल , हॉकी , कबड्डी , खो-खो आदि। 
स्वच्छ खेल के कुछ नियम :- 
  • खेलकूद निर्धारित निति के अनुरूप होना चाहिए। 
  • खेल प्रहरी एवं कोच का तर्क मान्य होना चाहिए। 
  • अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए। 
  • सहयोगी खिलाड़ियों को सम्मान करना चाहिए। 
     जब हमलोग स्वच्छ खेल के नियमों का पालन करते हैं तो हमारे अंदर कई जीवन मूल्यों का विकास होता है 
जैसे :- अनुशासन , धैर्य , सहनशीलता , ईमानदारी आदि। 

खेलकूद के दौरान सावधानियां :- 
  • निर्धारित समय  खेलकूद हो। 
  • पढाई छोड़कर कभी खेलकूद नहीं करना चाहिए। 
  • खेलने जाने के  पूर्व ऐनी माता-पिता को जानकारी देना। 
  • खेल के दौरान अपने सहयोगी को कभी जाती या धर्म पर प्रताड़ित नहीं करना। 
कौशल विकास:-
     जीविकोपार्जन  के लिए किए गए कार्य को पेशा कहते है। इसीलिए अलग-अलग लोगों के पास अलग-अलग पेशा होता है। जो लोग जिस कार्य कार्य में दक्ष होते है उसी कार्य को करते हैं और उसे अपना पेशा बना लेते हैं। यह दक्षता या कुशलता माता-पिता या तकनिकि संस्थानों सीखते हैं। जैसे:- खाना बनाने का दक्षता , खेती करने का दक्षता , रख-रखाव , भंडारण , संरक्षण एवं अन्य कार्यों में दक्ष।
     वह ब्यक्ति जो मिर्च-मसाला अदि बेचता है, उसे पंसारी कहते हैं।
     जो मिट्टी के वर्तन बनता है, उन्हें कुम्हार कहते हैं। कुम्हार कच्ची मिट्टी को गूंथ कर चक्र (पहिया) पर रख कर अपनी हाथों की कारीगरी एवं कौशल से आकर्षक वर्तनों का निर्माण करता है।
     विश्वकर्मा एक साईकिल मिस्त्री है। वह यह कार्य अपने पिता से सीखा है। पहले वह पेड़ के नीचे साईकिल की मरम्मत करता था। अब वह बाजार में एक दुकान में साईकिल की मरम्मत करता है।
     दर्जी एक पेशा है जो सुई, धागा और सिलाई मशीन की मदद से कपड़ा सिलता है। यह कला किसी न किसी से सीखा होता है।
     कशीदाकारी एक पेशा है। कशीदाकारी महिलाओं के कपड़े , सडी , चादर आदि में अलग-अलग रेशे सी कशीदा करते हैं। इस काम के लिए वो सुई एवं धागे का इस्तेमाल करते हैं।
     वाहन चलाने के तौर-तरीके बताने और सीखने वाले विद्यालय को  वाहन चालक प्रशिक्षण विद्यालय कहा जाता है। प्रशिक्षण देने के बाद अट्ठारह वर्ष की आयु के उपरांत जिला परिवहन विभाग द्वारा परीक्षा लेकर अनुज्ञा प्रमाण-पत्र दिया जाता है।





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